आजकल युवावर्ग जितना परिश्रम करते हैं उसके अनुरूप सफलता नहीं मिलती है। कारण खुद को मशीन की तरह एक साथ अनेक कार्यो का संचालन करना। लोगों को लगता है एक साथ अनेक कार्य करने पर वे ज्यादा कार्य कर सकेंगे या सफलता जल्दी मिलेगी। पर इसके विपरीत होता है और वे दुखी हो जाते हैं। उनका दुखी होना भी स्वाभाविक है। पर यदि रास्ते गलत हो तो मंजिल की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। इसीलिए रहीम जो हिंदी के एक प्रस्द्धि कवि थे— कहते हैं
एक साधै सब सधे, सब साधै सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
अर्थात अगर कई काम करना हो तो एक—एक करके यानि बारी—बारी से काम करना चाहिए। एक बार में एक काम करने से सारे काम पूरे हो जायेंगे। लेकिन एक बार में ही यदि सारे काम साधने यानि करने का प्रयास किया जाए, तो एक भी काम पूरा नहीं होगा। इसे रहीम दास जी ने एक उदाहरण के साथ समझाने का प्रयास किया है कि हम पौधों के मूल यानि जड़ में पानी डालते हैं और वह पानी फूल और फल के लिए भी पर्याप्त होता है। तना, फल और फूल में हम अलग से पानी नहीं डालते हैं।
अगर आपको जीवन में बहुत बड़ा बनना हो तो किसी भी काम के सबसे छोटा हिस्सा में विशेषज्ञता हासिल कीजिये। आप डॉक्टर का ही उदाहरण लीजिए— जो विशेषज्ञ हैं हम उन्हीं के पास जाते हैं। और उस विशेषज्ञ का फीस भी औरों से ज्यादा ही होता है। लोग विशेषज्ञ पर भरोसा भी करते हैं। इसी तरह जीवन में किसी एक क्षेत्र में अगर प्रवीणता हासिल कर ली जाए तो हम दूसरे क्षेत्रों में भी आसानी से सफलता हासिल कर लेंगे। इसलिए अस्त—व्यस्त जीवन गुजारने से कोई फायदा नहीं होगा। जीवन को व्यवस्थितकर काम करना चाहिए। यानि एक बार में एक काम। इसे आजमाकर देखिये अवश्य लाभ होगा।