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निवास ​के लिए वर्जित स्थान

प्रथम अध्याय नीति:1.8, 1.9 & 1.10

निवास के लिए वर्जित स्थान

चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के आठवें, नौवें एवं दसवें नीति में आचार्य चाणक्य उस स्थान यानि नगर, शहर या देश के बारे में बताते हैं जहाँ मनुष्य को निवास नहीं करना चाहिए। ये नगर, शहर अथवा देश इस प्रकार हैं:—

1. जहां किसी भी व्यक्ति का मान-सम्मान नहीं हो,

2. जहां व्यक्ति को कोई काम—धंधा नही मिल सके,

3. जहां अपना कोई रिश्तेदार या दोस्त नहीं रहता हो,

4. जहां विद्या प्राप्त करने का उचित साधन न हो यानि स्कूल—कॉलेज नहीं हो,

5. जहां धनवान व्यक्ति नहीं हो क्योंकि आपत्ति के समय धन की ही आवश्यकता होती है,

6. जहां वेदों के ज्ञाता नहीं हो,

7. जहां के कोई शासक नहीं हो,

8. जहां चिकित्सा की उचित सुविधा नहीं हो,

9. जहां पेयजल का उचित व्यवस्था नहीं हो,

10. जहां रोजगार अथवा आजीविका के साधन की स्थिति अच्छी नहीं हो,

11. जहां के लोगों में लोक लाज अथवा किसी प्रकार का भय नहीं हो,

12. जहां के लोगों में त्याग की भावना नहीं हो और वे परोपकारी नहीं हो,

13. जहां के लोगों में समाज अथवा कानून का भय नहीं हो और

14. जहां के लोगों में दान देने की आदत नहीं हो।

कुल मिलाकर ऐसे 14 जगहों पर आचार्य चाणक्य रहने की सलाह नहीं देते हैं। समझदार मनुष्य को चाहिए कि इन नीतियों का पालन करें, ताकि उन्हें जीवन—यापन करने में कोई कष्ट नहीं हो। और संतानों का भी भविष्य सुरक्षित एवं उज्ज्वल  हो।

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