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सार्थकता में ही संबंध का सुख है

द्वितीय अध्याय नीति :2.4

सार्थकता में ही संबंध का सुख है

चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के चौथे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पुत्र वहीे है जो पिता का आज्ञाकारी है, जो पिता की सेवा करता है। पिता वही है सच्चे अर्थो में पिता है जो बच्चों का स​ही पालन—पोषण करता है, देख—रेख करता है एवं उचित शिक्षा दिलवाकर सुयोग्य बनाता है। मित्र वही वास्तव में मित्र है जो विश्वासपात्र है, जो विश्वासघात करनेवाला नहीं है। पत्नी वही अच्छी है जो पति को कभी दुखी नहीं करती है एवं हमेशा पति के सुख का ध्यान करती है। असल में संबंधों की वास्तविकता तब तक है जब सब अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं एवं एक दूसरे को सुखी बनाने का प्रयास करते हैं, अन्यथा कोई भी संबंध बेकार है।

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