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साधु पुरूष

द्वितीय अध्याय नीति :2.9

साधु पुरूष

चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के नौवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि प्रत्येक पर्वत पर मणि—माणिक्य हो, प्रत्येक हाथी के मस्तक से मुक्ता मणि प्राप्त हो। सज्जन पुरूष सब जगह नहीं मिलते हैं और सभी वनों में चंदन के वृक्ष नहीं होते हैं। सज्जन व्यक्ति उसे कहते हैं जो दूसरों के बिगड़े काम को बनाता है, निस्वार्थ भाव से समाज—कल्याण हेतु कार्य करता है। यहाँ साधु का अर्थ भगवाधारी व्यक्ति से नहीं है। यहाँ इसका मतलब आदर्श समाजसेवी व्यक्ति से है। हलांकि ऐसे व्यक्ति सब जगह मौजूद नहीं है।

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