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मित्रता बराबर की

द्वितीय अध्याय नीति :220

मित्रता बराबर की

चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के बीसवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मित्रता बराबरवालों से ही करनी चाहिए। सेवा राजा की ही करनी चाहिए। ऐसा करना ही शोभनीय है। वैश्यों की शोभा व्यापार करना है तथा घर की शोभा शुभ लक्षणोंवाली  पत्नी है।

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