तृतीय अध्याय नीति :3-6
सज्जनों का सम्मान करें
चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के छठे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि साधु पुरूष या सज्जन पुरूष सागर से भी महान होते हैं। वैसे सागर को शांत एवं गंभीर माना जाता है पर प्रलय आने पर उसी सागर का जल किनारों को तोड़कर धरती को जलमय कर देता है पर साधु पुरूष अथवा सज्जन किसी भी परिस्थिति में यहाँ तक कि प्राणों के संकट उपस्थित हो जाने पर भी अपना स्वाभाव नहीं छोड़ते हैं। जन कल्याण करते रहते हैं। इसीलिए सज्जन पुरूष को सागर से भी गंभीर माने जाते हैं। उनका सम्मान हर हाल में करना चाहिए।