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णवान एक ही काफी है

तृतीय अध्याय नीति :3-14 —17

गुणवान एक ही काफी है

चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के चौदहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि वन में सुंदर फूलोंवाला एक ही वृक्ष अपनी सुगंध से सारे वन को सुगंधित कर देता है। इसी प्रकार एक ही सुपुत्र सारे कुल का नाम उंचा कर देता है। इसलिए अनेक गुणहीन पुत्रों या बच्चों की अपेक्षा एक ही गुणवान बच्चा पर्याप्त है।

वहीं पंद्रहवे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार वन में यदि एक भी सूखा पेड़ हो तो उसमें शीघ्र आग लग जाती है और उससे सारा वन जलकर राख हो जाता है। उसी प्रकार यदि कुल में एक भी कपूत पैदा हो जाता है तो वह सारे कुल को बदनाम कर देता है।

सौलहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अकेला चंदमा रात के सारे अंधेरे को दूर कर सारी दुनिया को अपने प्रकाश से जगमगा देता है। इसी तरह एक ही गुणवान पुत्र सारे कुल का नाम रोशन कर देता है। अंधियारी रात किसी को नहीं सुहाती। उसी तरह कुपुत्र भी कुल को नहीं सुहाता। वह कुल का नाम डुबानेवाला होता है।

सतरहवें नीति में आचार्य चाणक्य  कहते हैं कि अनेक अवगुणी पुत्रों के होने से कोई लाभ नहीं। उनके पैदा होने से सबको दुख ही होता है। कुल का नाम उंचा करनेवाला एक ही पुत्र अच्छा है।

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