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दुष्टों से बचें

षष्ठम अध्याय नीति : 13

दुष्टों से बचें

चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के तेरहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट—निकम्में राजा के राज्य में प्रजा दुखी रहती है। दुष्ट मित्र भी सदा दुख ही देता है। दुष्ट पत्नी घर की सुख—शांति को खत्म कर देती है। दुष्ट शिष्य को पढ़ाने से गुरू को दुख ही प्राप्त होता है। अत: दुष्ट राजा, दुष्ट मित्र, दुष्ट पत्नी एवं दुष्ट शिष्य के होने से न होना ही अच्छा है।

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