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हंस के समान व्यवहार नहीं करें

सप्तम अध्याय नीति : 13

हंस के समान व्यवहार नहीं करें

चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के तेरहवीं ​नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को हंस के समान व्यवहार नहीं करना चाहिए। उसे चाहिए कि वह जिसका आश्रय एक बार ले उसे कभी नहीं छोड़े। और यदि किसी कारणवश छोड़ना भी पड़े तो फिर लौटकर वहां नहीं आना चाहिए। अपने आश्रयदाता को बार—बार छोड़ना और उसके पास लौटकर आना मानवता का लक्षण नहीं है। अत: नीति यही कहती है कि संबंध स्थापित करने के बाद उसे बिना कारण के तोड़ना उचित नहीं है।

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