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शांति ही तपस्या है

अष्टम अध्याय नीति : 13

शांति ही तपस्या है

चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के तेरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शांति के समान कोई तपस्या नहीं है। संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है। तृष्णा से बढ़कर कोई रोग नहीं है और दया से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।

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