Skip to content

कर्म की प्रधानता

त्रयोदश अध्याय नीति : 1

कर्म की प्रधानता

चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के प्रथम नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अच्छा कार्य करनेवाला मनुष्य क्षण भर जिए तो भी अच्छा है। वह अपने छोटे से जीवन में अपना तथा समाज का कल्याण कर जाता है। किन्तु जो मनुष्य न तो स्वयं सुखी रहता है और न दूसरों को सुख पहुँचाता है, ऐसा व्यक्ति अपने दोनों लोक यानि पृथ्वी और परलोक को नष्ट करता है। ऐसा मनुष्य पृथ्वी का भार है। उसका मर जाना ही अच्छा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *