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मीठे बोल

त्रयोदश अध्याय नीति : 3— 4

मीठे बोल

चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि देवता, सज्जन और पिता स्वभाव से प्रसन्न होते हैं। विद्वान व्यक्ति मी​ठी बोली से प्रसन्न होते हैं। भाई—बं​धु खिलाने—पिलाने से प्रसन्न होते हैं।

वहीं चौथी नीति में आचार्य कहते हैं कि महापुरूषों का ​जीवन विचित्र होता है। वे धन को कोई महत्व नहीं देते। धन को वे तिनके के समान समझते हैं। परंतु जब उनके पास धन बढ़ता है तो वे और अधिक विनम्र हो जाते हैं।

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