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गुणहीन का क्या जीवन

चतुर्दश अध्याय नीति : 13-15

गुणहीन का क्या जीवन

चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के तेरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो मनुष्य गुणवान है और जो धर्म के काम करता है, उसे ही जीवित समझना चाहिए। जो न गुणवान है, न अच्छे धर्म—पुण्य के काम ही करता है उसके जीवित रहने से कोई लाभ नहीं। ऐसे व्यक्ति को मरा हुआ ही समझना चाहिए।

वहीं चौदहवी नीति में आचार्य कहते हैं कि यदि एक ही कर्म से सारे जगत को वश में करना चाहते हो तो दूसरों की बुराई करने में लगी हुई वाणी को रोक लें।

वहीं पंद्रहवी नीति में आचार्य कहते हैं जो प्रसंग के अनुसार बातें करना, प्रभाव डालनेवाला, प्रेम करना तथा अपनी शक्ति के अनुसार क्रोध करना जानता हैं, उसे पंडित कहते हैं।

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