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अनुचित धन

षष्ठदश अध्याय नीति : 11—13

अनुचित धन

चाणक्य नीति के षष्ठदश अघ्याय के  ग्यारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो धन किसी को दुखी करके प्राप्त हो, जो चोरी, तस्करी, काला बाजारी आदि अवैध तरीकों से मिला हो, ऐसा धन पाने की इच्छा नहीं करनी चाहिए।

वहीं बारहवी नीति में आचार्य कहते हैं कि कंजूस का धन समाज के किसी काम में नहीं आता है। मूर्ख के धन का भी दुरूपयोग ही होता है। धन का उपयोग समाज कल्याण के लिए होना चाहिए।

वहीं तेरहवी नीति में आचार्य कहते हैं कि धन, जीवन , स्त्री तथा भोजन की इच्छा कभी पूरी नहीं होती। इनकी चाह सदा बनी रहती है। इसी चाह को लेकर दुनिया के लोग मरते आये हैं, मर रहे हैं तथा आने वाले समय में भी ऐसा ही होता रहेगा।

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