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पराधीनता

द्वितीय अध्याय नीति :2.8 पराधीनता चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के आठवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मूर्खता, यौवन और पराधीनता कष्ट है। मूर्ख व्यक्ति को सही—गलत का ज्ञान न होने के कारण… पराधीनता

मन के विचार को गुप्त रखना चाहिए

द्वितीय अध्याय नीति :2.7 मन के विचार को गुप्त रखना चाहिए चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के सातवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मन में जो भी काम करने का विचार हो उसे… मन के विचार को गुप्त रखना चाहिए

सार को ग्रहण करें

प्रथम अध्याय नीति:1.16 सार को ग्रहण करें चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के सौलहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को अमृत, स्वर्ण, विद्या, गुण और स्त्री—रत्न को ग्रहण करने से कभी भी… सार को ग्रहण करें

किस पर भरोसा नहीं करना चाहिए

प्रथम अध्याय नीति:1.15 किस पर भरोसा नहीं करना चाहिए चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के पंद्रहवें नीति में आचार्य चाणक्य विश्वासयोग्य प्राणियों के बारे में कहते हैं कि लंबे नाखून वाले हिंसक पशुओं जैसे सिंह,… किस पर भरोसा नहीं करना चाहिए

विवाह समान में ही करना चाहिए

प्रथम अध्याय नीति:1.14 विवाह समान में ही करना चाहिए चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के चौदहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं विवाह के लिए वर और वधू का परिवार समान स्तर का होना चाहिए।… विवाह समान में ही करना चाहिए

हाथ आई चीज न गंवाएँ

प्रथम अघ्याय नीति :1.13 हाथ आई चीज न गंवाएँ चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के तेरहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का सहारा लेता है, उसका निश्चित भी… हाथ आई चीज न गंवाएँ

समय आने पर परख होती है।

प्रथम अध्याय नीति:1.11-12 समय आने पर परख होती है। चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के ग्यारहवें एवं बारहवें नीतियों में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अत: उसे अपने हर कार्य… समय आने पर परख होती है।

निवास ​के लिए वर्जित स्थान

प्रथम अध्याय नीति:1.8, 1.9 & 1.10 निवास ​के लिए वर्जित स्थान चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के आठवें, नौवें एवं दसवें नीति में आचार्य चाणक्य उस स्थान यानि नगर, शहर या देश के बारे में… निवास ​के लिए वर्जित स्थान

धन संचय अवश्य करें

प्रथम अध्याय नीति:1.7 धन संचय अवश्य करें चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के सातवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुरा समय आने पर मुष्य का सब कुछ नष्ट हो सकता है। लक्ष्मी चंचल… धन संचय अवश्य करें

विपत्ति में किसी रक्षा करनी चाहिए

प्रथम अध्याय नीति:1.6 विपत्ति में किसी रक्षा करनी चाहिए चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के छठे नीति में आचार्य चाणक्य विपत्ति काल यानी बुरे वक्त में किसकी रक्षा पहले करनी चाहिए, इस पर नीति बनाये… विपत्ति में किसी रक्षा करनी चाहिए

मृत्यु के इन चार कारणों से बचना चाहिए

प्रथम अध्याय नीति:1.5 मृत्यु के इन चार कारणों से बचना चाहिए। चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के पाँचवे नीति में आचार्य चाणक्य मृत्यु के चार कारणों के जिक्र किये हैं। चरित्रहीन पत्नी, दुष्ट मित्र, मुँहलगा… मृत्यु के इन चार कारणों से बचना चाहिए

शिक्षा सुपात्र को ही देना चाहिए

प्रथम अध्याय नीति:1.4 शिक्षा सुपात्र को ही देना चाहिए चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के चौथे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा विद्वान क्यों न हो किन्तु मूर्ख शिष्य… शिक्षा सुपात्र को ही देना चाहिए

ति जन कल्याण के लिए

प्रथम अध्याय, नीति:1.3 राजनीति जन कल्याण के लिए चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के तीसरे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि राजनीति जनकल्याण के लिए करनी चाहिए। इसलिए वे लोक कल्याण की ईच्छा से… ति जन कल्याण के लिए

अच्छा मनुष्य कौन?

प्रथम अध्याय, नीति:1.2 अच्छा मनुष्य कौन? आचार्य चाणक्य, चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के दूसरे नीति में अच्छा मनुष्य के बारे में बताये हैं कि हम अच्छा मनुष्य किसे समझें? आचार्य चाणक्य का कहना है… अच्छा मनुष्य कौन?

ईश वंदना

चाणक्य नीति प्रथम अध्याय, नीति:1.1 आचार्य चाणक्य का जन्म का नाम विष्णुगुप्त था और चणक नाम के आचार्य के पुत्र होने के कारण इनका नाम चाणक्य पड़ा। कुछ लोगों का कहना है कि अत्यंत तेज… ईश वंदना