दो लोगों का स्वभाव एक सा नहीं होता
पंचम अध्याय नीति : 4 दो लोगों का स्वभाव एक सा नहीं होता चाणक्य नीति के पंचम अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार बेर और कांटे एक ही वृक्ष… दो लोगों का स्वभाव एक सा नहीं होता
पंचम अध्याय नीति : 4 दो लोगों का स्वभाव एक सा नहीं होता चाणक्य नीति के पंचम अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार बेर और कांटे एक ही वृक्ष… दो लोगों का स्वभाव एक सा नहीं होता
पंचम अध्याय नीति : 3 संकट का सामना करें चाणक्य नीति के पंचम अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि आपत्तियों एवं संकटों से तभी तक डरना चाहिए जब तक वह दूर… संकट का सामना करें
पंचम अध्याय नीति : 2 पुरूष की परख गुणों से होती है चाणक्य नीति के पंचम अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि सोने का परीक्षण, घीसने, काटने, तपाने और पीटने इन… पुरूष की परख गुणों से होती है
पंचम अध्याय नीति : 1 अतिथि श्रेष्ठ होता है चाणक्य नीति के पंचम अघ्याय के प्रथम नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अग्नि ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य तीनों वर्णों का गुरू है। ब्राह्मण अपने… अतिथि श्रेष्ठ होता है
चतुर्थ अध्याय नीति : 19-20 माता—पिता के विभिन्न रूप चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के उन्नीसवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि संस्कार के अनुसार पाँच प्रकार के पिता होते हैं— जन्म देनेवाला, उपनयन… माता—पिता के विभिन्न रूप
चतुर्थ अध्याय नीति : 18 काम से पहले विचार कर लेना चाहिए चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के अठारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को किसी भी काम शुरू करने के पहले… काम से पहले विचार कर लेना चाहिए
चतुर्थ अध्याय नीति : 17 बुढ़ापे का लक्षण चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के सतरहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि राह में चलते रहने से थककर मनुष्य अपने आप को बुढ़ा अनुभव करने… बुढ़ापे का लक्षण
चतुर्थ अध्याय नीति : 16 इनका त्याग देना ही श्रेयस्कर है चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के सोलहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस धर्म में दया न हो उस धर्म को छोड़… इनका त्याग देना ही श्रेयस्कर है
चतुर्थ अध्याय नीति : 15 ज्ञान का अभ्यास निरंतर करते रहना चाहिए चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के पंद्रहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ज्ञान को स्थायी एवं उपयोगी बनाए रखने के लिए… ज्ञान का अभ्यास निरंतर करते रहना चाहिए
चतुर्थ अध्याय नीति : 14 निर्धनता अभिाशाप है चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के चौदहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पुत्रहीन के लिए घर सूना हो जाता है। जिसके भाई न हो उसके… निर्धनता अभिाशाप है
चतुर्थ अध्याय नीति : 13 आदर्श पत्नी चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के तेरहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि आदर्श पत्नी वही है जो मन, वचन तथा कर्म से पवित्र हो, कुशल गृहिणी… आदर्श पत्नी
चतुर्थ अध्याय नीति : 12 कब कितनों के साथ रहें चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के बारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि तप में अकेले, पढ़ने में दो, गाने में तीन, जाते समय… कब कितनों के साथ रहें
चतुर्थ अध्याय नीति : 11 ये बातें एक बार ही होती है चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के ग्यारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि राजा का आदेश एक ही बार होता है। विद्वान… बातें एक बार ही होती है
चतुर्थ अध्याय नीति : 10 सुखदायक वस्तु चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के दसवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि सांसारिक ताप से जलते हुए लोगों को तीन ही चीजें आराम दे सकती है—… सुखदायक वस्तु
चतुर्थ अध्याय नीति : 9 जिनका उपयोग नहीं उनका होना बेकार है चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के नौवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अनुपयोगी वस्तुओं का होना न होने के बराबर है।… जिनका उपयोग नहीं उनका होना बेकार है
चतुर्थ अध्याय नीति : 8 इससे सदा बचना चाहिए चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के आठवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्टों के गावं में रहना, कुलहीन की सेवा, कुभोजन, झगड़ालु पत्नी, मूर्ख… इससे सदा बचना चाहिए
चतुर्थ अध्याय नीति : 7 मूर्ख पुत्र किसी काम का नहीं चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के सातवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मूर्ख पुत्र का चिरायु होने से मर जाना अच्छा होता… मूर्ख पुत्र किसी काम का नहीं
चतुर्थ अध्याय नीति : 6 एक ही गुणवान पुत्र काफी है चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के छठे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि केवल एक गुणवान पुत्र सैकड़ों गुणहीन निकम्मों बेटों से अच्छा… एक ही गुणवान पुत्र काफी है
चतुर्थ अध्याय नीति : 5 विद्या कामधेनु के समान है चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के पाँचवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्या कामधेनु के समान गुणोंवाली है, बुरे समय में भी फल… विद्या कामधेनु के समान है
चतुर्थ अध्याय नीति : 4 पुण्य करते रहना चाहिए चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जब शरीर स्वस्थ रहता है तब मृत्यु का भी भय नहीं रहता… पुण्य करते रहना चाहिए
चतुर्थ अध्याय नीति : 2-3 संतों की सेवा फलदायक होता है चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि संसार के अधिकांश पुत्र, मित्र और भाई, साधु—महात्माओं और विद्वानों… संतों की सेवा फलदायक होता है
चतुर्थ अध्याय नीति :1 कुछ चीजें भाग्य से मिलती है चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जब प्राणी माँ के गर्भ में होता है तभी ये पाँच… कुछ चीजें भाग्य से मिलती है
तृतीय अध्याय नीति :3-21 लक्ष्मी का वास चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के इक्कीसवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जहाँ मूर्खों का सम्मान नहीं होता, अन्न का भंडार भरा रहता है और पति—पत्नी… लक्ष्मी का वास
तृतीय अध्याय नीति :3-20 जीवन की निरर्थकता चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के बीसवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति न तो अच्छे काम करके धर्म में बृद्धि करता है, न ही… जीवन की निरर्थकता