Skip to content

सार को ग्रहण करें

प्रथम अध्याय नीति:1.16 सार को ग्रहण करें चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के सौलहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को अमृत, स्वर्ण, विद्या, गुण और स्त्री—रत्न को ग्रहण करने से कभी भी… सार को ग्रहण करें

किस पर भरोसा नहीं करना चाहिए

प्रथम अध्याय नीति:1.15 किस पर भरोसा नहीं करना चाहिए चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के पंद्रहवें नीति में आचार्य चाणक्य विश्वासयोग्य प्राणियों के बारे में कहते हैं कि लंबे नाखून वाले हिंसक पशुओं जैसे सिंह,… किस पर भरोसा नहीं करना चाहिए

विवाह समान में ही करना चाहिए

प्रथम अध्याय नीति:1.14 विवाह समान में ही करना चाहिए चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के चौदहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं विवाह के लिए वर और वधू का परिवार समान स्तर का होना चाहिए।… विवाह समान में ही करना चाहिए

हाथ आई चीज न गंवाएँ

प्रथम अघ्याय नीति :1.13 हाथ आई चीज न गंवाएँ चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के तेरहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का सहारा लेता है, उसका निश्चित भी… हाथ आई चीज न गंवाएँ

समय आने पर परख होती है।

प्रथम अध्याय नीति:1.11-12 समय आने पर परख होती है। चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के ग्यारहवें एवं बारहवें नीतियों में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अत: उसे अपने हर कार्य… समय आने पर परख होती है।

निवास ​के लिए वर्जित स्थान

प्रथम अध्याय नीति:1.8, 1.9 & 1.10 निवास ​के लिए वर्जित स्थान चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के आठवें, नौवें एवं दसवें नीति में आचार्य चाणक्य उस स्थान यानि नगर, शहर या देश के बारे में… निवास ​के लिए वर्जित स्थान

धन संचय अवश्य करें

प्रथम अध्याय नीति:1.7 धन संचय अवश्य करें चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के सातवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुरा समय आने पर मुष्य का सब कुछ नष्ट हो सकता है। लक्ष्मी चंचल… धन संचय अवश्य करें