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इन्हें जगाएं नहीं

नवम अध्याय नीति :7 इन्हें जगाएं नहीं चाणक्य नीति के नवम अघ्याय के सातवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि सांप, राजा, शेर, बर्र (ततैया), बच्चा, किसी दूसरे व्यक्ति का कुत्ता तथा मूर्ख… इन्हें जगाएं नहीं

इन्हें सोने न दें

नवम अध्याय नीति : 6 इन्हें सोने न दें चाणक्य नीति के नवम अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्यार्थी को,नौकर को, रास्ते में सोये हुए राहगीर को, भूखे व्यक्ति को,… इन्हें सोने न दें

विद्या का सम्मान

नवम अध्याय नीति : 5 विद्या का सम्मान चाणक्य नीति के नवम अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्वान लोग पहले ही गणित—विद्या से सूर्य और चन्द्रमा के ग्रहणों के बारे… विद्या का सम्मान

सबसे बड़ा सुख

नवम अध्याय नीति: 4 सबसे बड़ा सुख चाणक्य नीति के नवम अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि औषधियों में गिलोय महत्वपूर्ण है। भोजन करने और उसे पचाने की शक्ति सदा बनी… सबसे बड़ा सुख

विडंबना

नवम अध्याय नीति : 3 विडंबना चाणक्य नीति के नवम अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि सोना कीमती धातु है पर इसमें सुगंध नहीं होती। गन्ने में मिठास होती है, पर… विडंबना

दुष्ट का नाश

नवम अध्याय नीति : 2 दुष्ट का नाश चाणक्य नीति के नवम अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो दुष्ट पहले एक दूसरे को अपने भेद बता देते हैं और फिर… दुष्ट का नाश

मोक्ष

नवम अध्याय नीति : 1 मोक्ष चाणक्य नीति के नवम अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि मनुष्य मोक्ष चाहता है तो सबसे पहले अपनी इन्द्रियों के विषयों को विष समझकर… मोक्ष

इनसे हानि ही होती है

अष्टम अध्याय नीति : 22 इनसे हानि ही होती है चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के बाइसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस राजा के राज्य में अन्न की कमी हो, जो यज्ञ… इनसे हानि ही होती है

दुर्गुणों का दुष्प्रभाव

अष्टम अध्याय नीति : 18 दुर्गुणों का दुष्प्रभाव चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के अठारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि असंतुष्ट ब्राह्मण तथा संतुष्ट राजा नष्ट हो जाते हैं। लज्जा करने वाली वैश्या… दुर्गुणों का दुष्प्रभाव

इन्हें शुद्ध समझना चाहिए

अष्टम अध्याय नीति : 17 इन्हें शुद्ध समझना चाहिए चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भूमिगत जल शुद्ध होता है, पतिव्रता स्त्री शुद्ध होती है। प्रजा का… इन्हें शुद्ध समझना चाहिए

दुर्गुण सदगुणों को नष्ट कर देती है

अष्टम अध्याय नीति : 16 दुर्गुण सदगुणों को नष्ट कर देती है चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के सौलहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति कितना ही रूपवान यानि सुंदर हो यदि गुणवान… दुर्गुण सदगुणों को नष्ट कर देती है

इनसे शोभा बढ़ती है

अष्टम अध्याय नीति : 15 इनसे शोभा बढ़ती है चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के पंद्रहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि गुणवान व्यक्ति के गुण ही उसकी सुंदरता होते हैं। अच्छा आचरण कुल… इनसे शोभा बढ़ती है

संतोष बड़ी चीज है

अष्टम अध्याय नीति : 14 संतोष बड़ी चीज है चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के चौदह नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है इसे यमराज के समान ही… संतोष बड़ी चीज है

शांति ही तपस्या है

अष्टम अध्याय नीति : 13 शांति ही तपस्या है चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के तेरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शांति के समान कोई तपस्या नहीं है। संतोष से बढ़कर कोई सुख… शांति ही तपस्या है

भावना में ही भगवान है

अष्टम अध्याय नीति : 11—12 भावना में ही भगवान है चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के ग्यारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि वैसे तो मूर्ति ईश्वर नहीं है फिर भी कोई सच्ची भावना… भावना में ही भगवान है

शुभ कर्म करें

अष्टम अध्याय नीति : 10 शुभ कर्म करें चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के दसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि देवता का वास न लकड़ी में है, न ही पत्थर में। देवता का… शुभ कर्म करें

विडम्बना

अष्टम अध्याय नीति : 9 विडम्बना चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के नौवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु, धन का भाईयों के हाथ में चला जाना, भोजन के… विडम्बना

ज्ञान को व्यवहार में लाना चाहिए

अष्टम अध्याय नीति : 8 ज्ञान को व्यवहार में लाना चाहिए चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ज्ञान को व्यवहार में लाना चाहिए। ऐसा न करने पर… ज्ञान को व्यवहार में लाना चाहिए

पानी एक औषधि

अष्टम अध्याय नीति :7 पानी एक औषधि चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के सातवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भोजन न पचने पर जल औषधि के समान होता है। भोजन करते समय जल… पानी एक औषधि

स्नान से शुद्धता

अष्टम अध्याय नीति: 6 स्नान से शुद्धता चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शरीर में तेल की मालिश करने के बाद, चितों की धुआँ लग जाने पर,… स्नान से शुद्धता

धन का सुदपयोग

अष्टम अध्याय नीति: 5 धन का सुदपयोग चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि गुणी लोगों को ही धन देना चाहिए, गुणहीन को नहीं। बादल सागर से पानी… धन का सुदपयोग

सबसे बड़ा नीच

अष्टम अध्याय नीति:4 सबसे बड़ा नीच चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि एक हजार चांडालें के बराबर बुराईयां एक यवन में होता है ऐसा विद्वानों का मानना… सबसे बड़ा नीच

जैसा अन्न वैसा संतान

अष्टम अध्याय नीति:3 जैसा अन्न वैसा संतान चाणक्य नीति केअष्टम अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति जैसा भोजन करता है, वैसी ही उसकी संतान भी पैदा होती है। सात्विक भोजन… जैसा अन्न वैसा संतान

दान का कोई समय नहीं

अष्टम अध्याय नीति: 2 दान का कोई समय नहीं चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दान देने के लिए कोई बाध्यता नहीं होती है। यानि गन्ना चूसने… दान का कोई समय नहीं