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बुद्धि भाग्य के पीछे चलती है

षष्ठम अध्याय नीति : 6 बुद्धि भाग्य के पीछे चलती है चाणक्य नीति के षष्ठम अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य जैसा भाग्य लेकर पैदा होता है उसकी बुद्धि भी… बुद्धि भाग्य के पीछे चलती है

धन का प्रभाव

षष्ठम अध्याय नीति : 5 धन का प्रभाव चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धनवान के अनेक मित्र बन जाते हैं। बंधु—बांधव भी उसे आ घेरते हैं।… धन का प्रभाव

भ्रमण के लाभ एवं हानि

षष्ठम अध्याय नीति : 4 भ्रमण के लाभ एवं हानि चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भ्रमण यानि सदा घूमते रहने से राजा, विद्वान एवं योगी पूजे… भ्रमण के लाभ एवं हानि

इनसे शुद्ध किया जाता है

षष्ठम अध्याय नीति : 3 इनसे शुद्ध किया जाता है चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कांसा को राख से साफ किया जाता है। तेजाब से ताम्बा… इनसे शुद्ध किया जाता है

चांडाल प्रकृति

षष्ठम अध्याय नीति : 2 चांडाल प्रकृति चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पक्षियों में कौए को चांडाल समझना चाहिए। पशुओं में कुत्ते को चांडाल समझना चाहिए।… चांडाल प्रकृति

सुनना भी चाहिए

षष्ठम अध्याय नीति : 1 सुनना भी चाहिए चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के  प्रथम नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को सुनकर ही अपने धर्म का ज्ञान होता है। सुनकर ही मनुष्य… सुनना भी चाहिए

इन्हें धूर्त समझें

पंचम अध्याय नीति : 21 इन्हें धूर्त समझें चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के इक्कीसवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पुरूषों में नाई धूर्त होता है। पक्षियों में कौआ धूर्त होता है। पशुओं… इन्हें धूर्त समझें

सत्य

पंचम अध्याय नीति : 20 धर्म अटल है चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के बीसवीं  नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लक्ष्मी—धन, संपत्ति सब चंचल है यानि ये एक जगह स्थिर नहीं रहती। अत:… सत्य

सत्य

पंचम अध्याय नीति : 19 सत्य चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के उन्नीसवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि परमात्मा को ही सत्य कहा जाता है। सत्य से ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य… सत्य

जो सामने नहीं हो उससे क्या लगाव

पंचम अध्याय नीति : 18 जो सामने नहीं हो उससे क्या लगाव चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के अठारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं। चौपाया अथवा… जो सामने नहीं हो उससे क्या लगाव

प्रियतम वस्तु

पंचम अध्याय नीति : 17 प्रियतम वस्तु चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के सतरहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बादल के जल के समान कोई जल नहीं होता। अपने बल के समान कोई… प्रियतम वस्तु

कौन कब बेकार है

पंचम अध्याय नीति : 16 कौन कब बेकार है चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के सौलहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि समुद्र में वर्षा बेकार है। जिसका पेटभरा हो उसे भोजन कराना बेकार… कौन कब बेकार है

मित्र के रूप

पंचम अध्याय नीति : 15 मित्र के रूप चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के पंद्रहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि घर से बाहर विद्या मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है।… मित्र के रूप

संसार को तिनके के समान समझें

पंचम अध्याय नीति : 14 संसार को तिनके के समान समझें चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के चौदहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति ब्रह्म को जान लेता है उसे स्वर्ग की… संसार को तिनके के समान समझें

मनुष्य अकेला होता है

पंचम अध्याय नीति : 13 मनुष्य अकेला होता है चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के तेरहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यह सच है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, लेकिन कुछ कामों… मनुष्य अकेला होता है

आत्मा को पहचानें

पंचम अध्याय नीति : 12 आत्मा को पहचानें चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के बारहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि काम—वासना मनुष्य का सबसे बड़ा रोग है, मोहमाया या अज्ञानता सबसे बड़ा शत्रु… आत्मा को पहचानें

नष्ट करने वाला

पंचम अध्याय नीति : 11 नष्ट करने वाला चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के ग्यारहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दान दरिद्रता को नष्ट कर देता है। सदाचार से व्यक्ति के दुख नष्ट… नष्ट करने वाला

मूर्ख का त्याग करें

पंचम अध्याय नीति : 10 मूर्ख का त्याग करें चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के दसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो लोग वेदों को, पांडित्य को, शास्त्रों को, सदाचार को ​तथा शांत… मूर्ख का त्याग करें

कौन किसी रक्षा करता है

पंचम अध्याय नीति :9 कौन किसी रक्षा करता है चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के  नौवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि  धन से धर्म की, योग से विद्या की, मधुर स्वभाव से राजा… कौन किसी रक्षा करता है

गुणों से पहचान होती है

पंचम अध्याय नीति : 8 गुणों से पहचान होती है चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति के साथ रहने पर उसके परिश्रम, बोलने के ढंग आदि… गुणों से पहचान होती है

नष्ट होने के कारण

पंचम अध्याय नीति : 7 नष्ट होने के कारण चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के सातवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं किआलस्य से विद्या नष्ट होती है। दूसरे के हाथ में जाने से धन… नष्ट होने के कारण

इनमें द्वेष भावना होती है

पंचम अध्याय नीति : 6 इनमें द्वेष भावना होती है चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति पंडित को देखकर जलता है। निर्धन-गरीब व्यक्ति धनवानों को… इनमें द्वेष भावना होती है

स्पष्टवादी बनें

पंचम अध्याय नीति : 5 स्पष्टवादी बनें चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के  पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति को दुनियादारी से वैराग्य हो जाता है, उसे कोई कार्य नहीं सौंपना… स्पष्टवादी बनें

दो लोगों का स्वभाव एक सा नहीं होता

पंचम अध्याय नीति : 4 दो लोगों का स्वभाव एक सा नहीं होता चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार बेर और कांटे एक ही वृक्ष… दो लोगों का स्वभाव एक सा नहीं होता