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महापुरूषों का धन सम्मान है

अष्टम अध्याय नीति:1 महापुरूषों का धन सम्मान है चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि नीच लोगों के लिए धन ही सब कुछ होता है। धन प्राप्त करने… महापुरूषों का धन सम्मान है

देह में आत्मा देखें

सप्तम अध्याय नीति : 20 देह में आत्मा देखें चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के बीसवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि फूल में सुगंध होता है। तिलों में तेल होता है, लकड़ी में… देह में आत्मा देखें

सबसे बड़ी पवित्रता

सप्तम अध्याय नीति : 19 सबसे बड़ी पवित्रता चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के उन्नीसवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मन में बुरे विचार न आने देना, मुँह से कोई गलत बात न… सबसे बड़ी पवित्रता

विद्या बिना जीवन व्यर्थ है

सप्तम अध्याय नीति : 18 विद्या बिना जीवन व्यर्थ है चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के अठारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार कुत्ते की पूँछ से न तो उसके गुप्त अंग… विद्या बिना जीवन व्यर्थ है

सज्जनों का ही संगत करना चाहिए

सप्तम अध्याय नीति : 17 सज्जनों का ही संगत करना चाहिए चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के सतरहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि व्यक्ति महान लोगों का साथ करता है तो उसे… सज्जनों का ही संगत करना चाहिए

दुष्कर्मी नरक भोगते हैं

सप्तम अध्याय नीति : 16 दुष्कर्मी नरक भोगते हैं चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के सौलहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट व्यक्ति अत्यंत क्रोधी स्वभाव का होता है। इसकी वाणी कड़वी होती… दुष्कर्मी नरक भोगते हैं

सत्कर्म में ही महानता है

सप्तम अध्याय नीति : 15 सत्कर्म में ही महानता है चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के पंद्रहवही नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दान देने की आदतवाला, सबसे प्रिय बोलने वाला, देवताओं की पूजा… सत्कर्म में ही महानता है

अर्जित धन का त्याग करते रहें

सप्तम अध्याय नीति : 14 अर्जित धन का त्याग करते रहें चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के चौदहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी तालाब के जल को स्वच्छ रखने के लिए उसका… अर्जित धन का त्याग करते रहें

हंस के समान व्यवहार नहीं करें

सप्तम अध्याय नीति : 13 हंस के समान व्यवहार नहीं करें चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के तेरहवीं ​नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को हंस के समान व्यवहार नहीं करना चाहिए। उसे… हंस के समान व्यवहार नहीं करें

जीवन का सिद्धांत

सप्तम अध्याय नीति : 12 जीवन का सिद्धांत चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के बारहवीं ​नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को अधिक सीधा यानि भोला—भाला नहीं होना चाहिए। अधिक सीधा व्यक्ति को… जीवन का सिद्धांत

स्त्रियों का बल यौवन होता है।

सप्तम अध्याय नीति : 11 स्त्रियों का बल यौवन होता है। चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के ग्यारहवीं ​नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस राजा के बाजुओं में शक्ति होती है वहीं राजा… स्त्रियों का बल यौवन होता है।

किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए

सप्तम अध्याय नीति : 10 किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के ​दसवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि शत्रु अपने से अधिक बलवान हो तो उसी के… किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए

कौन कब प्रसन्न होते हैं

सप्तम अध्याय नीति : 9 कौन कब प्रसन्न होते हैं चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के नौवी ​नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ब्राह्मण भोजन से प्रसन्न होते हैं। मोर बादलों के गजरने पर… कौन कब प्रसन्न होते हैं

किस प्रकार वश में करना चाहिए

सप्तम अध्याय नीति : 8 किस प्रकार वश में करना चाहिए चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के आठवीं ​नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हाथी को अंकुश से पीटकर वश में किया जाता है।… किस प्रकार वश में करना चाहिए

इनसे बचना चाहिए

सप्तम अध्याय नीति : 5 & 7 इनसे बचना चाहिए चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के पाँचवी ​नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दो ब्रह्मणों के बीच से और आग के बीच से, मालिक… इनसे बचना चाहिए

संतोष सबसे बड़ा सुख है

सप्तम अध्याय नीति : 3 & 4 संतोष सबसे बड़ा सुख है चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के ​तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि संतोष सबसे बड़ा सुख है। जो व्यक्ति संतोषी होता… संतोष सबसे बड़ा सुख है

लज्जा—संकोच कब नहीं करना चाहिए

सप्तम अध्याय नीति : 2 लज्जा—संकोच कब नहीं करना चाहिए चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के दूसरी ​नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी को धन उधार देते समय किसी से लेते समय या… लज्जा—संकोच कब नहीं करना चाहिए

मन की बात मन में रखना चाहिए

सप्तम अध्याय नीति : 1 मन की बात मन में रखना चाहिए चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के प्रथम नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धन का नाश हो जाने पर, मन दुखी होने… मन की बात मन में रखना चाहिए

दुष्टों से बचें

षष्ठम अध्याय नीति : 13 दुष्टों से बचें चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के तेरहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट—निकम्में राजा के राज्य में प्रजा दुखी रहती है। दुष्ट मित्र भी सदा… दुष्टों से बचें

इन्हें वश में करना चाहिए

षष्ठम अध्याय नीति : 12 इन्हें वश में करना चाहिए चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के बारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लालची व्यक्ति को धन देकर वश में किया जा सकता है।… इन्हें वश में करना चाहिए

शत्रु कौन

षष्ठम अध्याय नीति : 11 शत्रु कौन चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के ग्यारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पुत्र के लिए कर्जा छोड़ जाने वाला पिता शत्रु के समान होता है। बदचलन… शत्रु कौन

कर्म का प्रभाव

षष्ठम अध्याय नीति : 9 & 10 कर्म का प्रभाव चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के नौवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य के स्वयं के कर्मों के आधार पर अच्छा या बुरा… कर्म का प्रभाव

सुनना भी चाहिए

षष्ठम अध्याय नीति : 8 सुनना भी चाहिए चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के आठवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जन्म से अंधा व्यक्ति दुनिया की कोई भी वस्तु नहीं देख सकता। ठीक… सुनना भी चाहिए

काल प्रबल होता है

षष्ठम अध्याय नीति :7 काल प्रबल होता है चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के  सातवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि काल प्राणियों को निगल जाता है। काल सृष्टि का विनाश कर देता है।… काल प्रबल होता है