षष्ठदश अध्याय नीति : 6—10
महानता
चाणक्य नीति के षष्ठदश अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि गुणों से ही मनुष्य बड़ा बनता है न कि किसी ऊँचे स्थान पर बैठ जाने से। जैसे राजमहल के शिखर पर बैठ जाने पर भी कौआ गरूड़ नहीं बनता।
वहीं सातवी नीति में आचार्य कहते हैं कि गुणवान व्यक्ति का सभी जगह आदर किया जाता है। धनी व्यक्तियों का सब जगह सम्मान नहीं होता है। पूर्णिमा का चन्द्रमा चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, उसमें दाग होने के कारण व्यक्ति उसकी पूजा नहीं करते। जबकि दूज के चांद को सभी सिर झुकाते हैं, क्योंकि उसमें दाग नहीं होता है, गुण होते हैं।
वहीं आठवी नीति में आचार्य कहते हैं कि व्यक्ति अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करते। अपनी प्रशंसा स्वयं करने पर इन्द्र भी छोटा हो जाता है।
नौवी नीति में आचार्य कहते हैं कि गुण भी किसी योग्य व्यक्ति में होने पर सुंदर लगता है। जैसे सोने में जड़े जाने पर ही रत्न भी सुंदर लगता है।
दसवी नीति में आचार्य कहते हैं कि गुणी व्यक्ति भी उचित स्थान नहीं मिलने पर दुखी हो जाता है। जैसे निर्दोष मणि को भी अपने लिए सोने के आधार की आवश्यकता होती है। जिसमें उसे जड़ा जा सके।