दुनिया की रीति
द्वितीय अध्याय नीति :2.17 -18 दुनिया की रीति चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के सतरहवें नीति में आचार्य चाणक्य प्रकृति का नियम बताते हैं। प्रकृति का नियम यह है कि पुरूष के निर्धन हो जाने… दुनिया की रीति
द्वितीय अध्याय नीति :2.17 -18 दुनिया की रीति चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के सतरहवें नीति में आचार्य चाणक्य प्रकृति का नियम बताते हैं। प्रकृति का नियम यह है कि पुरूष के निर्धन हो जाने… दुनिया की रीति
द्वितीय अध्याय नीति :2.16 व्यक्ति का बल चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के सौलहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ब्रह्मणों का बल विद्या है, राजा का बल सेना है। वैश्यों का बल धन… व्यक्ति का बल
द्वितीय अध्याय नीति :2.15 विनाश का कारण चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के पंद्रहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि तेज बहाव वाली नदी के किनारे लगने वाले वृक्ष, दूसरे के घर में रहने… विनाश का कारण
द्वितीय अध्याय नीति :2.14 आसक्ति जहर है चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के चौदहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पत्नी से वियोग, अपनों से अपमान, ऋण का न चुका पाना, दुष्ट राजा की… आसक्ति जहर है
द्वितीय अध्याय नीति :2.10,11,12 बच्चों के प्रति माता—पिता का कर्त्तव्य चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के दसवे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पिता का सबसे बड़ा कर्त्तव्य है कि पुत्र को बेहतर शिक्षा… माता—पिता का कर्त्तव्य
द्वितीय अध्याय नीति :2.9 साधु पुरूष चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के नौवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि प्रत्येक पर्वत पर मणि—माणिक्य हो, प्रत्येक हाथी के मस्तक से मुक्ता… साधु पुरूष
द्वितीय अध्याय नीति :2.7 मन के विचार को गुप्त रखना चाहिए चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के सातवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मन में जो भी काम करने का विचार हो उसे… मन के विचार को गुप्त रखना चाहिए
द्वितीय अध्याय नीति :2.5 & 6 धोखेबाज मित्र को त्याग देना चाहिए चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के पांचवे एवं छठे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं किएक विष भरे घड़े के उपर यदि थोड़ा… धोखेबाज मित्र को त्याग देना चाहिए
द्वितीय अध्याय नीति :2.4 सार्थकता में ही संबंध का सुख है चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के चौथे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पुत्र वहीे है जो पिता का आज्ञाकारी है, जो पिता… सार्थकता में ही संबंध का सुख है
द्वितीय अध्याय नीति :2.3 जीवन के सुख में ही स्वर्ग है चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो, पत्नी धार्मिक एवं उत्तम चाल—चलन वाली… जीवन के सुख में ही स्वर्ग है
द्वितीय अध्याय नीति :2.2 जीवन के सुख भाग्यवान को ही मिलते हैं चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भोज्य पदार्थ यानि भोजन की सामग्री, भोजन शक्ति, सुंदर… जीवन के सुख भाग्यवान को ही मिलते हैं
द्वितीय अध्याय नीति :2.1 स्त्रियों के स्वाभाविक दोष चाणक्य नीति के दूसरे अध्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य नारी के स्वाभाव का वर्णन किया है। वे कहते हैं कि झूठ बोलना, साहस, छल—कपट, मूर्खता,… स्त्रियों के स्वाभाविक दोष
प्रथम अध्याय नीति:1.17 स्त्री पुरूष से आगे होती है चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के सतरहें नीति में आचार्य चाणक्य पुरूष एवं महिला के बीच तुलना कर कहते हैं कि स्त्रियों में आहार दुगुना, लज्जा… स्त्री पुरूष से आगे होती है
प्रथम अध्याय नीति:1.16 सार को ग्रहण करें चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के सौलहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को अमृत, स्वर्ण, विद्या, गुण और स्त्री—रत्न को ग्रहण करने से कभी भी… सार को ग्रहण करें
प्रथम अध्याय नीति:1.15 किस पर भरोसा नहीं करना चाहिए चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के पंद्रहवें नीति में आचार्य चाणक्य विश्वासयोग्य प्राणियों के बारे में कहते हैं कि लंबे नाखून वाले हिंसक पशुओं जैसे सिंह,… किस पर भरोसा नहीं करना चाहिए
प्रथम अध्याय नीति:1.14 विवाह समान में ही करना चाहिए चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के चौदहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं विवाह के लिए वर और वधू का परिवार समान स्तर का होना चाहिए।… विवाह समान में ही करना चाहिए
प्रथम अध्याय नीति:1.11-12 समय आने पर परख होती है। चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के ग्यारहवें एवं बारहवें नीतियों में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अत: उसे अपने हर कार्य… समय आने पर परख होती है।
प्रथम अध्याय नीति:1.8, 1.9 & 1.10 निवास के लिए वर्जित स्थान चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के आठवें, नौवें एवं दसवें नीति में आचार्य चाणक्य उस स्थान यानि नगर, शहर या देश के बारे में… निवास के लिए वर्जित स्थान
प्रथम अध्याय नीति:1.7 धन संचय अवश्य करें चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के सातवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुरा समय आने पर मुष्य का सब कुछ नष्ट हो सकता है। लक्ष्मी चंचल… धन संचय अवश्य करें
प्रथम अध्याय नीति:1.6 विपत्ति में किसी रक्षा करनी चाहिए चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के छठे नीति में आचार्य चाणक्य विपत्ति काल यानी बुरे वक्त में किसकी रक्षा पहले करनी चाहिए, इस पर नीति बनाये… विपत्ति में किसी रक्षा करनी चाहिए
प्रथम अध्याय नीति:1.5 मृत्यु के इन चार कारणों से बचना चाहिए। चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के पाँचवे नीति में आचार्य चाणक्य मृत्यु के चार कारणों के जिक्र किये हैं। चरित्रहीन पत्नी, दुष्ट मित्र, मुँहलगा… मृत्यु के इन चार कारणों से बचना चाहिए
प्रथम अध्याय नीति:1.4 शिक्षा सुपात्र को ही देना चाहिए चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के चौथे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा विद्वान क्यों न हो किन्तु मूर्ख शिष्य… शिक्षा सुपात्र को ही देना चाहिए