विनाश काले विपरीत बुद्धि
षष्ठदश अध्याय नीति : 5 विनाश काले विपरीत बुद्धि चाणक्य नीति के षष्ठदश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विनाश आने पर बुद्धि साथ छोड़ जाती है। सोने की हिरन न… विनाश काले विपरीत बुद्धि
स्त्री का चरित्र
षष्ठदश अध्याय नीति : 2—4 स्त्री का चरित्र चाणक्य नीति के षष्ठदश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि स्त्रियां एक से बात करती है कटाक्ष से दूसरे को देखती है और… स्त्री का चरित्र
पुण्य से यश
पंचदश अध्याय नीति : 19 पुण्य से यश चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के उन्नीसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि एक छोटे से पर्वत को कृष्ण हाथों से आसानी से उठा लिया। केवल… पुण्य से यश
प्रेम बंधन
पंचदश अध्याय नीति : 17 प्रेम बंधन चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बंधन तो अनेक हैं, किंतु प्रेम की डोर का बंधन अलग ही है। लकड़ी… प्रेम बंधन
ब्राह्मण और लड़की
पंचदश अध्याय नीति :16 ब्राह्मण और लड़की चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के सौलहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लक्ष्मीजी कहती हैं कि अगस्त्य भी ब्राह्मण थे, उन्होंने मेरे पिता समुद्र को पी… ब्राह्मण और लड़की
परधीनता में सुख नहीं
पंचदश अध्याय नीति : 14-15 परधीनता में सुख नहीं चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के चौदहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि चन्द्रमा का शरीर अमृत से बना है, वह अमृत का भंडार है… परधीनता में सुख नहीं
ब्राह्मण को मान दें
पंचदश अध्याय नीति: 13 ब्राह्मण को मान दें चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के तेरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भवसागर में यह विपरीत चलनेवाली ब्राह्मण रूपी नौका धन्य है। इसे नीचे रहनेवाले… ब्राह्मण को मान दें
तत्व ग्रहण
पंचदश अध्याय नीति : 10 तत्व ग्रहण चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के दसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शास्त्र अनंत हैं, विद्याएं अनेक हैं, किंतु मनुष्य का जीवन बहुत छोटा है, उसमें… तत्व ग्रहण
धन ही सच्चा बंधु
पंचदश अध्याय नीति : 5-6 धन ही सच्चा बंधु चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य जब कभी धनहीन हो जाता है तब उसके मित्र, सेवक और… धन ही सच्चा बंधु
लक्ष्मी कहां नहीं ठहरती
पंचदश अध्याय नीति : 4 लक्ष्मी कहां नहीं ठहरती चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लक्ष्मी चंचल होती है। गंदे वस्त्र पहननेवाले, गंदे दांतोवाले, अधिक भोजन करनेवाले,… लक्ष्मी कहां नहीं ठहरती
दुष्टों का उपचार
पंचदश अध्याय नीति :3 दुष्टों का उपचार चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट और कांटे दोनों समान होते हैं। इन दोनों का दो ही उपचार है।… दुष्टों का उपचार
गुरू ब्रह्म है
पंचदश अध्याय नीति:2 गुरू ब्रह्म है चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो गुरू एक अक्षर का भी ज्ञान कराता है, उसके ऋण से मुक्त होने के… गुरू ब्रह्म है
दयावान बनें
पंचदश अध्याय नीति: 1 दयावान बनें चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस मनुष्य के हृदय में सभी मनुष्यों, पशु—पक्षियों,जीव—जंतुओं आदि के लिए अथाह दया होती है… दयावान बनें
इनका संग्रह करना चाहिए
चतुर्दश अध्याय नीति : 19 इनका संग्रह करना चाहिए चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के उन्नीसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को अपने जीवन में अधिक—से अधिक धर्म के काम करने चाहिए,… इनका संग्रह करना चाहिए
वाणी से गुण झलक जाते हैं
चतुर्दश अध्याय नीति: 18 वाणी से गुण झलक जाते हैं चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के अठारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कोयल वसंत आने तक चुप ही रहती है। वसंत आने पर… वाणी से गुण झलक जाते हैं
नजरिया अपना—अपना
चतुर्दश अध्याय नीति :16 नजरिया अपना—अपना चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के सौलहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी वस्तु को देखने का नजरिया प्रत्येक व्यक्ति का अपना—अपना होता है यानि अलग होता… नजरिया अपना—अपना
गुणहीन का क्या जीवन
चतुर्दश अध्याय नीति : 13-15 गुणहीन का क्या जीवन चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के तेरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो मनुष्य गुणवान है और जो धर्म के काम करता है, उसे… गुणहीन का क्या जीवन