ईश्वर सर्वव्यापी है
चतुर्दश अध्याय नीति : 12 ईश्वर सर्वव्यापी है चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के बारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ब्राह्मणों का देवता आग है। बुद्धिमान लोग अपने हृदय में ही ईश्वर को… ईश्वर सर्वव्यापी है
चतुर्दश अध्याय नीति : 12 ईश्वर सर्वव्यापी है चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के बारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ब्राह्मणों का देवता आग है। बुद्धिमान लोग अपने हृदय में ही ईश्वर को… ईश्वर सर्वव्यापी है
चतुर्दश अध्याय नीति : 11 इनके पास नहीं रहना चाहिए चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के ग्यारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि राजा, आग, गुरू और स्त्री इनके अधिक समीप रहने पर विनाश… इनके पास नहीं रहना चाहिए
चतुर्दश अध्याय नीति : 9 मन की दूरी चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के नौवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति के लिए दिल में जगह होती है, वह कहीं दूर भी… मन की दूरी
चतुर्दश अध्याय नीति : 7 करने के बाद क्या सोचना चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के सातवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुरा काम करने पर आत्मग्लानि होता है और बुद्धि ठिकाने पर… करने के बाद क्या सोचना
चतुर्दश अध्याय नीति : 6 वैराग्य महिमा चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी वस्तु या पदार्थ के देखने से उत्पन्न ज्ञान क्षणभर के लिए होता है,… वैराग्य महिमा
चतुर्दश अध्याय नीति :5 थोड़ी भी अधिक है चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जल में तेल, दुष्ट से कही गई गुप्त बात, योग्य व्यक्ति को दिया… थोड़ी भी अधिक है
चतुर्दश अध्याय नीति :3 शरीर का महत्व चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धन नष्ट होने पर उसे दुबारा कमाया जा सकता है। मित्र रूठ जाने पर… शरीर का महत्व
चतुर्दश अध्याय नीति : 2 जैसा बोना वैसा पाना चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि निर्धनता, रोग, दुख, बंधन और बुरी आदतें सबकुछ मनुष्य के कर्मों के… जैसा बोना वैसा पाना
त्रयोदश अध्याय नीति : 18-19 गुरू महिमा चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के अठारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि परमात्मा का नाम उँ है जिसे एकाक्षर ब्रह्म कहा जाता है— वो परमात्मा का… गुरू महिमा
त्रयोदश अध्याय नीति: 17 पूर्व—जन्म चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यद्यपि मनुष्य को फल कर्म के अनुसार मिलता है और बुद्धि भी कर्म के अधीन है।… पूर्व—जन्म
त्रयोदश अध्याय नीति : 11-12 मोक्ष मार्ग चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के ग्यारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुराइयों में, गलत विचारों में मन को लगाना ही बंधन है और इससे मन… मोक्ष मार्ग
त्रयोदश अध्याय नीति : 8-10 धर्महीन मृत समान चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य दो प्रकार के होते हैं— पहला जीते जी भी मरा हुआ मनुष्य।… धर्महीन मृत समान
त्रयोदश अध्याय नीति: 7 यथा राजा तथा प्रजा चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के सातवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जैसा राजा होता है, वैसी प्रजा भी बन जाती है। राजा धार्मिक हो… यथा राजा तथा प्रजा
त्रयोदश अध्याय नीति : 6 भविष्य के प्रति जागरूक रहना चाहिए चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति भविष्य में आनेवाली विपत्ति के प्रति जागरूक रहता… भविष्य के प्रति जागरूक रहना चाहिए
त्रयोदश अध्याय नीति : 5 स्नेह दुख का जड़ होता है चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिसे किसी से प्रेम होता है उसे उसी से भय… स्नेह दुख का जड़ होता है
त्रयोदश अध्याय नीति : 2 बीती बातों को भूला देना चाहिए चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बीती बातों पर दुख करने से कोई लाभ नहीं होता… बीती बातों को भूला देना चाहिए
त्रयोदश अध्याय नीति : 1 कर्म की प्रधानता चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के प्रथम नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अच्छा कार्य करनेवाला मनुष्य क्षण भर जिए तो भी अच्छा है। वह अपने… कर्म की प्रधानता