चतुर्दश अध्याय नीति : 2 जैसा बोना वैसा पाना चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि निर्धनता, रोग,
रत्न
चतुर्दश अध्याय नीति : 1 रत्न चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अन्न, जल और सुंदर शब्द
गुरू महिमा
त्रयोदश अध्याय नीति : 18-19 गुरू महिमा चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के अठारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि परमात्मा का नाम उँ
पूर्व—जन्म
त्रयोदश अध्याय नीति: 17 पूर्व—जन्म चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यद्यपि मनुष्य को फल कर्म के
सेवा भाव
त्रयोदश अध्याय नीति : 16 सेवा भाव चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के सोलहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भूमि से पानी निकालने
सुख—दुख
त्रयोदश अध्याय नीति : 13-15 सुख—दुख चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के तेरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुनिया में कोई भी ऐसा
मोक्ष मार्ग
त्रयोदश अध्याय नीति : 11-12 मोक्ष मार्ग चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के ग्यारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुराइयों में, गलत विचारों
धर्महीन मृत समान
त्रयोदश अध्याय नीति : 8-10 धर्महीन मृत समान चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य दो प्रकार
यथा राजा तथा प्रजा
त्रयोदश अध्याय नीति: 7 यथा राजा तथा प्रजा चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के सातवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जैसा राजा होता
भविष्य के प्रति जागरूक रहना चाहिए
त्रयोदश अध्याय नीति : 6 भविष्य के प्रति जागरूक रहना चाहिए चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि
स्नेह दुख का जड़ होता है
त्रयोदश अध्याय नीति : 5 स्नेह दुख का जड़ होता है चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि
मीठे बोल
त्रयोदश अध्याय नीति : 3— 4 मीठे बोल चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि देवता, सज्जन और
बीती बातों को भूला देना चाहिए
त्रयोदश अध्याय नीति : 2 बीती बातों को भूला देना चाहिए चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि
कर्म की प्रधानता
त्रयोदश अध्याय नीति : 1 कर्म की प्रधानता चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के प्रथम नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अच्छा कार्य करनेवाला
सोचकर काम करना चाहिए
द्वादश अध्याय नीति : 18-19 सोचकर काम करना चाहिए चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के अठारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धन की
सीख कहीं से भी ले लें
द्वादश अध्याय नीति :17 सीख कहीं से भी ले लें चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति
राम की महिमा
द्वादश अध्याय नीति : 15-16 राम की महिमा चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के पंद्रहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धर्म में तत्परता,
सच्चा पंडित
द्वादश अध्याय नीति : 14 सच्चा पंडित चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के चौदहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को चाहिए कि
अनुराग ही जीवन है
द्वादश अध्याय नीति : 13 अनुराग ही जीवन है चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के तेरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार
दुष्ट दुष्ट ही है
द्वादश अध्याय नीति : 12 दुष्ट दुष्ट ही है चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के बारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि उम्र का
रिश्तेदारों के छ: गुण
द्वादश अध्याय नीति : 11 रिश्तेदारों के छ: गुण चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के ग्यारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि सच्चाई व्यक्ति
तुच्छता में बड़प्पन नहीं
द्वादश अध्याय नीति : 9—10 तुच्छता में बड़प्पन नहीं चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के नौवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस शहर
संगति की महिमा
द्वादश अध्याय नीति : 7—8 संगति की महिमा चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के सातवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि फूलों की सुगंध
भाग्य का दोष
द्वादश अध्याय नीति : 6 भाग्य का दोष चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि करील में पत्ते
व्यर्थ जीवन
द्वादश अध्याय नीति : 5 व्यर्थ जीवन चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिन लोगों का भगवान
मनुष्यरूपी गीदड़
द्वादश अध्याय नीति : 4 मनुष्यरूपी गीदड़ चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो मनुष्य कभी किसी
महापुरूष
द्वादश अध्याय नीति : 3 महापुरूष चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो अपने लोगों से प्रेम,
दान
द्वादश अध्याय नीति : 2 दान चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति दुखियों, गरीबों, विद्वान
गृहस्थ धर्म
द्वादश अध्याय नीति : 1 गृहस्थ धर्म चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस गृहस्थ के घर
दान की महिमा
एकादश अध्याय नीति : 17 दान की महिमा चाणक्य नीति के एकादश अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि महापुरूषों को अन्न—धन