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संतोष सबसे बड़ा सुख है

सप्तम अध्याय नीति : 3 & 4 संतोष सबसे बड़ा सुख है चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के ​तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि संतोष सबसे बड़ा सुख है। जो व्यक्ति संतोषी होता… संतोष सबसे बड़ा सुख है

लज्जा—संकोच कब नहीं करना चाहिए

सप्तम अध्याय नीति : 2 लज्जा—संकोच कब नहीं करना चाहिए चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के दूसरी ​नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी को धन उधार देते समय किसी से लेते समय या… लज्जा—संकोच कब नहीं करना चाहिए

मन की बात मन में रखना चाहिए

सप्तम अध्याय नीति : 1 मन की बात मन में रखना चाहिए चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के प्रथम नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धन का नाश हो जाने पर, मन दुखी होने… मन की बात मन में रखना चाहिए

दुष्टों से बचें

षष्ठम अध्याय नीति : 13 दुष्टों से बचें चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के तेरहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट—निकम्में राजा के राज्य में प्रजा दुखी रहती है। दुष्ट मित्र भी सदा… दुष्टों से बचें

इन्हें वश में करना चाहिए

षष्ठम अध्याय नीति : 12 इन्हें वश में करना चाहिए चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के बारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लालची व्यक्ति को धन देकर वश में किया जा सकता है।… इन्हें वश में करना चाहिए

शत्रु कौन

षष्ठम अध्याय नीति : 11 शत्रु कौन चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के ग्यारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पुत्र के लिए कर्जा छोड़ जाने वाला पिता शत्रु के समान होता है। बदचलन… शत्रु कौन

कर्म का प्रभाव

षष्ठम अध्याय नीति : 9 & 10 कर्म का प्रभाव चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के नौवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य के स्वयं के कर्मों के आधार पर अच्छा या बुरा… कर्म का प्रभाव

सुनना भी चाहिए

षष्ठम अध्याय नीति : 8 सुनना भी चाहिए चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के आठवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जन्म से अंधा व्यक्ति दुनिया की कोई भी वस्तु नहीं देख सकता। ठीक… सुनना भी चाहिए

काल प्रबल होता है

षष्ठम अध्याय नीति :7 काल प्रबल होता है चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के  सातवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि काल प्राणियों को निगल जाता है। काल सृष्टि का विनाश कर देता है।… काल प्रबल होता है

बुद्धि भाग्य के पीछे चलती है

षष्ठम अध्याय नीति : 6 बुद्धि भाग्य के पीछे चलती है चाणक्य नीति के षष्ठम अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य जैसा भाग्य लेकर पैदा होता है उसकी बुद्धि भी… बुद्धि भाग्य के पीछे चलती है

धन का प्रभाव

षष्ठम अध्याय नीति : 5 धन का प्रभाव चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धनवान के अनेक मित्र बन जाते हैं। बंधु—बांधव भी उसे आ घेरते हैं।… धन का प्रभाव

भ्रमण के लाभ एवं हानि

षष्ठम अध्याय नीति : 4 भ्रमण के लाभ एवं हानि चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भ्रमण यानि सदा घूमते रहने से राजा, विद्वान एवं योगी पूजे… भ्रमण के लाभ एवं हानि

इनसे शुद्ध किया जाता है

षष्ठम अध्याय नीति : 3 इनसे शुद्ध किया जाता है चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कांसा को राख से साफ किया जाता है। तेजाब से ताम्बा… इनसे शुद्ध किया जाता है

चांडाल प्रकृति

षष्ठम अध्याय नीति : 2 चांडाल प्रकृति चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पक्षियों में कौए को चांडाल समझना चाहिए। पशुओं में कुत्ते को चांडाल समझना चाहिए।… चांडाल प्रकृति

सुनना भी चाहिए

षष्ठम अध्याय नीति : 1 सुनना भी चाहिए चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के  प्रथम नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को सुनकर ही अपने धर्म का ज्ञान होता है। सुनकर ही मनुष्य… सुनना भी चाहिए

इन्हें धूर्त समझें

पंचम अध्याय नीति : 21 इन्हें धूर्त समझें चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के इक्कीसवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पुरूषों में नाई धूर्त होता है। पक्षियों में कौआ धूर्त होता है। पशुओं… इन्हें धूर्त समझें

सत्य

पंचम अध्याय नीति : 20 धर्म अटल है चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के बीसवीं  नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लक्ष्मी—धन, संपत्ति सब चंचल है यानि ये एक जगह स्थिर नहीं रहती। अत:… सत्य

सत्य

पंचम अध्याय नीति : 19 सत्य चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के उन्नीसवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि परमात्मा को ही सत्य कहा जाता है। सत्य से ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य… सत्य

जो सामने नहीं हो उससे क्या लगाव

पंचम अध्याय नीति : 18 जो सामने नहीं हो उससे क्या लगाव चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के अठारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं। चौपाया अथवा… जो सामने नहीं हो उससे क्या लगाव

प्रियतम वस्तु

पंचम अध्याय नीति : 17 प्रियतम वस्तु चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के सतरहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बादल के जल के समान कोई जल नहीं होता। अपने बल के समान कोई… प्रियतम वस्तु

कौन कब बेकार है

पंचम अध्याय नीति : 16 कौन कब बेकार है चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के सौलहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि समुद्र में वर्षा बेकार है। जिसका पेटभरा हो उसे भोजन कराना बेकार… कौन कब बेकार है

मित्र के रूप

पंचम अध्याय नीति : 15 मित्र के रूप चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के पंद्रहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि घर से बाहर विद्या मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है।… मित्र के रूप

संसार को तिनके के समान समझें

पंचम अध्याय नीति : 14 संसार को तिनके के समान समझें चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के चौदहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति ब्रह्म को जान लेता है उसे स्वर्ग की… संसार को तिनके के समान समझें

मनुष्य अकेला होता है

पंचम अध्याय नीति : 13 मनुष्य अकेला होता है चाणक्य नीति के पंचम  अघ्याय के तेरहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यह सच है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, लेकिन कुछ कामों… मनुष्य अकेला होता है