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लक्ष्मी का वास

तृतीय अध्याय नीति :3-21 लक्ष्मी का वास चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के इक्कीसवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जहाँ मूर्खों का सम्मान नहीं होता, अन्न का भंडार भरा रहता है और पति—पत्नी… लक्ष्मी का वास

जीवन की निरर्थकता

तृतीय अध्याय नीति :3-20 जीवन की निरर्थकता चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के बीसवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति न तो अच्छे काम करके धर्म में बृद्धि करता है, न ही… जीवन की निरर्थकता

समय की सुझ

तृतीय अध्याय नीति :3-19 समय की सुझ चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के उन्नीसवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि उपद्रव यानि लड़ाई—झगड़ा, दंगा—फसाद हो जाने की स्थिति में, भयंकर अकाल पड़ जाने की… समय की सुझ

माता—पिता का दायित्व

तृतीय अध्याय नीति :3-18 माता—पिता का दायित्व चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के अठारहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि माता—पिता का दायित्व है कि वे पाँच वर्ष की आयु तक ही पुत्र के… माता—पिता का दायित्व

णवान एक ही काफी है

तृतीय अध्याय नीति :3-14 —17 गुणवान एक ही काफी है चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के चौदहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि वन में सुंदर फूलोंवाला एक ही वृक्ष अपनी सुगंध से सारे… णवान एक ही काफी है

वाणी में मधुरता लाएं

तृतीय अध्याय नीति :3-13 वाणी में मधुरता लाएं चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के तेरहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बलवान व्यक्ति के लिए कोई भी वस्तु भारी नहीं होती। व्यापारियों के लिए… वाणी में मधुरता लाएं

अति का त्याग करें

तृतीय अध्याय नीति :3-12 अति का त्याग करें चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के बारहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अति दोनों स्थिति में अच्छा नहीं माना जाता है चाहे भलाई हो या… अति का त्याग करें

परिश्रम का ही फल मिलता है

तृतीय अध्याय नीति :3-11 परिश्रम का ही फल मिलता है चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के ग्यारहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि परिश्रम करने से गरीबी दूर होती है और जीवन संपन्न होता… परिश्रम का ही फल मिलता है

श्रेष्ठता को बचाएं

तृतीय अध्याय नीति :3-10 श्रेष्ठता को बचाएं चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के दसवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि आवश्यकता पड़ने पर कुल के लिए एक व्यक्ति को त्याग दें। ग्राम के लिए… श्रेष्ठता को बचाएं

सूरत से सीरत भली

तृतीय अध्याय नीति :3-9 सूरत से सीरत भली चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के नौवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कोयल का रूप उसका स्वर है, पतिव्रता होना स्त्रियों की सुंदरता है। कुरूप… सूरत से सीरत भली

मूर्ख एवं विद्याहीन व्यक्तियों का त्याग करें

तृतीय अध्याय नीति :3-7&8 मूर्ख एवं विद्याहीन व्यक्तियों का त्याग करें चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के सातवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति मनुष्य होते हुए भी पशु ही है। जैसे… मूर्ख एवं विद्याहीन व्यक्तियों का त्याग करें

सज्जनों का सम्मान करें

तृतीय अध्याय नीति :3-6 सज्जनों का सम्मान करें चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के छठे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि साधु पुरूष या सज्जन पुरूष सागर से भी महान होते हैं। वैसे सागर… सज्जनों का सम्मान करें

कुलीनों की संगति करें

तृतीय अध्याय नीति :3-5 कुलीनों की संगति करें चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि संगति या मित्रता कुलीन यानि खानदानी व्यक्ति से ही करना चाहिए क्योंकि खानदानी… कुलीनों की संगति करें

दुष्ट और साँप में अच्छा कौन?

तृतीय अध्याय नीति :3-4 दुष्ट और साँप में अच्छा कौन? चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट व्यक्ति और सांप में, सांप अच्छा है न कि दुष्ट… दुष्ट और साँप में अच्छा कौन?

व्यवहार कुशल बनें

तृतीय अध्याय नीति :3-3 व्यवहार कुशल बनें चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कुशल व्यक्ति का कर्तव्य यही है कि बेटी का विवाह किसी अच्छे घर में… व्यवहार कुशल बनें

लक्षणों से आचरण का पता चलता है

तृतीय अध्याय नीति :3-2 लक्षणों से आचरण का पता चलता है चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि आचरण से व्यक्ति के कुल का पता चलता है यानि… लक्षणों से आचरण का पता चलता है

दोष कहाँ नहीं है?

तृतीय अध्याय नीति :3–1 दोष कहाँ नहीं है? चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को अपनी कमियों को लेकर अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए। बल्कि स्वयं… दोष कहाँ नहीं है?

मित्रता बराबर की

द्वितीय अध्याय नीति :2–20 मित्रता बराबर की चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के बीसवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मित्रता बराबरवालों से ही करनी चाहिए। सेवा राजा की ही करनी चाहिए। ऐसा करना… मित्रता बराबर की

दुष्कर्मों से सचेत रहें

द्वितीय अध्याय नीति :2-19 दुष्कर्मों से सचेत रहें चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के उन्नीसवें नीति में आचार्य चाणक्य कुसंगति से बचने के लिए कहते हैं कि दुराचारी, दुष्ट स्वभाववाला, बिना किसी कारण दूसरों को… दुष्कर्मों से सचेत रहें

दुनिया की रीति

द्वितीय अध्याय नीति :2.17 -18 दुनिया की रीति चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के सतरहवें नीति में आचार्य चाणक्य प्रकृति का नियम बताते हैं। प्रकृति का नियम यह है कि पुरूष के निर्धन हो जाने… दुनिया की रीति

व्यक्ति का बल

द्वितीय अध्याय नीति :2.16 व्यक्ति का बल चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के सौलहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ब्रह्मणों का बल विद्या है, राजा का बल सेना है। वैश्यों का बल धन… व्यक्ति का बल

विनाश का कारण

द्वितीय अध्याय नीति :2.15 विनाश का कारण चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के पंद्रहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि तेज बहाव वाली नदी के किनारे लगने वाले वृक्ष, दूसरे के घर में रहने… विनाश का कारण

आसक्ति जहर है

द्वितीय अध्याय नीति :2.14 आसक्ति जहर है चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के चौदहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पत्नी से वियोग, अपनों से अपमान, ऋण का न चुका पाना, दुष्ट राजा की… आसक्ति जहर है

स्वाध्याय

द्वितीय अध्याय नीति :2.13 स्वाध्याय चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के तेरहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मानव जीवन अमूल्य है। इसका एक—एक क्षण अमूल्य है। मानव जीवन को सफल बनाने के लिए… स्वाध्याय