पंचदश अध्याय नीति :12 मूर्ख कौन चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के बारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति चारों वेदों तथा
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तत्व ग्रहण
पंचदश अध्याय नीति : 10 तत्व ग्रहण चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के दसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शास्त्र अनंत हैं, विद्याएं
आचरण
पंचदश अध्याय नीति : 8-9 आचरण चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भोजन वही है, जो ब्रह्मणों
धन ही सच्चा बंधु
पंचदश अध्याय नीति : 5-6 धन ही सच्चा बंधु चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य जब
लक्ष्मी कहां नहीं ठहरती
पंचदश अध्याय नीति : 4 लक्ष्मी कहां नहीं ठहरती चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लक्ष्मी चंचल
दुष्टों का उपचार
पंचदश अध्याय नीति :3 दुष्टों का उपचार चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट और कांटे दोनों
गुरू ब्रह्म है
पंचदश अध्याय नीति:2 गुरू ब्रह्म है चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो गुरू एक अक्षर का
दयावान बनें
पंचदश अध्याय नीति: 1 दयावान बनें चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस मनुष्य के हृदय में
मानव धर्म
चतुर्दश अध्याय नीति : 20 मानव धर्म चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के बीसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्टों का साथ छोड़
इनका संग्रह करना चाहिए
चतुर्दश अध्याय नीति : 19 इनका संग्रह करना चाहिए चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के उन्नीसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को
वाणी से गुण झलक जाते हैं
चतुर्दश अध्याय नीति: 18 वाणी से गुण झलक जाते हैं चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के अठारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कोयल
गोपनीय
चतुर्दश अध्याय नीति : 17 गोपनीय चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति सिद्ध औषधि, धर्म,
नजरिया अपना—अपना
चतुर्दश अध्याय नीति :16 नजरिया अपना—अपना चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के सौलहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी वस्तु को देखने का
गुणहीन का क्या जीवन
चतुर्दश अध्याय नीति : 13-15 गुणहीन का क्या जीवन चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के तेरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो मनुष्य
ईश्वर सर्वव्यापी है
चतुर्दश अध्याय नीति : 12 ईश्वर सर्वव्यापी है चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के बारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ब्राह्मणों का देवता
इनके पास नहीं रहना चाहिए
चतुर्दश अध्याय नीति : 11 इनके पास नहीं रहना चाहिए चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के ग्यारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि राजा,
मीठी वाणी
चतुर्दश अध्याय नीति : 10 मीठी वाणी चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के दसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिससे अपना कोई कल्याण
मन की दूरी
चतुर्दश अध्याय नीति : 9 मन की दूरी चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के नौवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति के
अहंकार
चतुर्दश अध्याय नीति : 8 अहंकार चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मानव को दान, तप, शूरता,
करने के बाद क्या सोचना
चतुर्दश अध्याय नीति : 7 करने के बाद क्या सोचना चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के सातवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुरा
वैराग्य महिमा
चतुर्दश अध्याय नीति : 6 वैराग्य महिमा चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी वस्तु या पदार्थ
थोड़ी भी अधिक है
चतुर्दश अध्याय नीति :5 थोड़ी भी अधिक है चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जल में तेल,
एकता
चतुर्दश अध्याय नीति : 4 एकता चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शत्रु चाहे कितना बलवान हो,
शरीर का महत्व
चतुर्दश अध्याय नीति :3 शरीर का महत्व चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धन नष्ट होने पर
जैसा बोना वैसा पाना
चतुर्दश अध्याय नीति : 2 जैसा बोना वैसा पाना चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि निर्धनता, रोग,
रत्न
चतुर्दश अध्याय नीति : 1 रत्न चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अन्न, जल और सुंदर शब्द
गुरू महिमा
त्रयोदश अध्याय नीति : 18-19 गुरू महिमा चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के अठारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि परमात्मा का नाम उँ
पूर्व—जन्म
त्रयोदश अध्याय नीति: 17 पूर्व—जन्म चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यद्यपि मनुष्य को फल कर्म के
सेवा भाव
त्रयोदश अध्याय नीति : 16 सेवा भाव चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के सोलहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भूमि से पानी निकालने
सुख—दुख
त्रयोदश अध्याय नीति : 13-15 सुख—दुख चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के तेरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुनिया में कोई भी ऐसा