एकादश अध्याय नीति : 8 गुण ग्राहकता चाणक्य नीति के एकादश अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो जिसके गुणों को
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आदत नहीं बदलती
एकादश अध्याय नीति : 6—7 आदत नहीं बदलती चाणक्य नीति के एकादश अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट को चाहे
गुण तथा प्रवृति
एकादश अध्याय नीति : 5 गुण तथा प्रवृति चाणक्य नीति के एकादश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिसे घर से
समय
एकादश अध्याय नीति : 4 समय चाणक्य नीति के एकादश अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कलियुग के दस हजार वर्ष
सूरत से सीरत भली
एकादश अध्याय नीति : 3 सूरत से सीरत भली चाणक्य नीति के एकादश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विशाल शरीरवाला
नाश
एकादश अध्याय नीति : 2 नाश चाणक्य नीति के एकादश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस देश में न्याय—कानून की
संस्कार का प्रभाव
एकादश अध्याय नीति : 1 संस्कार का प्रभाव चाणक्य नीति के एकादश अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दान देने का
चिंता चिता समान
दशम अध्याय नीति : 20 चिंता चिता समान चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के बीसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि चिंता करने से
घी सबसे बड़ी शक्ति शक्तिशाली
दशम अध्याय नीति : 19 घी सबसे बड़ी शक्ति शक्तिशाली चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के उन्नीसावीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि साधारण
सब ईश्वर की माया है
दशम अध्याय नीति : 17—18 सब ईश्वर की माया है चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मुझे
बुद्धि ही बल है
दशम अध्याय नीति : 16 बुद्धि ही बल है चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के सौलहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति
भावुकता से बचना चाहिए
दशम अध्याय नीति : 15 भावुकता से बचना चाहिए चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के पंद्रहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि एक ही
घर में ही त्रिलोक का सुख
दशम अध्याय नीति : 14 घर में ही त्रिलोक का सुख चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के चौदहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि
ब्राह्मण धर्म
दशम अध्याय नीति : 13 ब्राह्मण धर्म चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के तेरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि संध्या पूजा ब्राह्मण का
निर्धनता अभिशाप है
दशम अध्याय नीति : 12 निर्धनता अभिशाप है चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के बारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य हिंसक जीवों
दुश्मनी का परिणाम
दशम अध्याय नीति : 11 दुश्मनी का परिणाम चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के ग्यारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि साधु—महात्माओं से शत्रुता
उपदेश सुपात्र को ही देना चाहिए
दशम अध्याय नीति : 8—10 उपदेश सुपात्र को ही देना चाहिए चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि
गुणहीन मनुष्य पशु समान
दशम अध्याय नीति: 7 गुणहीन मनुष्य पशु समान चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के सातवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो मनुष्य विद्या
लोभी से कुछ नहीं मांगे
दशम अध्याय नीति : 6 लोभी से कुछ नहीं मांगे चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लोभी
भाग्य
दशम अध्याय नीति : 5 भाग्य चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भाग्य बड़ा बलवान होता है।
कवि क्या नहीं देखते
दशम अध्याय नीति : 4 कवि क्या नहीं देखते चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कवि क्या
विद्या किसे प्राप्त होती है
दशम अध्याय नीति : 3 विद्या किसे प्राप्त होती है चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्या
सोच विचार कर काम करना चाहिए
दशम अध्याय नीति : 2 सोच विचार कर काम करना चाहिए चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि
विद्या सबसे बड़ा धन है
दशम अध्याय नीति : 1 विद्या सबसे बड़ा धन है चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्वान