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अहंकार

चतुर्दश अध्याय नीति : 8 अहंकार चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मानव को दान, तप, शूरता, विद्वता, सुशीलता और नीतिनिपुणता का कभी अहंकार नहीं करना चाहिए,… अहंकार

करने के बाद क्या सोचना

चतुर्दश अध्याय नीति : 7 करने के बाद क्या सोचना चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के सातवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुरा काम करने पर आत्मग्लानि होता है और बुद्धि ठिकाने पर… करने के बाद क्या सोचना

वैराग्य महिमा

चतुर्दश अध्याय नीति : 6 वैराग्य महिमा चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी वस्तु या पदार्थ के देखने से उत्पन्न ज्ञान क्षणभर के लिए होता है,… वैराग्य महिमा

थोड़ी भी अधिक है

चतुर्दश अध्याय नीति :5 थोड़ी भी अधिक है चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जल में तेल, दुष्ट से कही गई गुप्त बात, योग्य व्यक्ति को दिया… थोड़ी भी अधिक है

एकता

चतुर्दश अध्याय नीति : 4 एकता चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शत्रु चाहे कितना बलवान हो, यदि अनेक छोटे—छोटे व्यक्ति भी मिलकर उसका सामना करें तो… एकता

शरीर का महत्व

चतुर्दश अध्याय नीति :3 शरीर का महत्व चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धन नष्ट होने पर  उसे दुबारा कमाया जा सकता है। मित्र रूठ जाने पर… शरीर का महत्व

जैसा बोना वैसा पाना

चतुर्दश अध्याय नीति : 2 जैसा बोना वैसा पाना चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि निर्धनता, रोग, दुख, बंधन और बुरी आदतें सबकुछ मनुष्य के कर्मों के… जैसा बोना वैसा पाना

रत्न

चतुर्दश अध्याय नीति : 1 रत्न चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अन्न, जल और सुंदर शब्द पृथ्वी के ये ही तीन सच्चे रत्न हैं। हीरे जवाहरात… रत्न

गुरू महिमा

त्रयोदश अध्याय नीति : 18-19 गुरू महिमा चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के अठारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि परमात्मा का नाम उँ है जिसे एकाक्षर ब्रह्म कहा जाता है— वो परमात्मा का… गुरू महिमा

पूर्व—जन्म

त्रयोदश अध्याय नीति: 17 पूर्व—जन्म चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यद्यपि मनुष्य को फल कर्म के अनुसार मिलता है और बुद्धि भी कर्म के अधीन है।… पूर्व—जन्म

सेवा भाव

त्रयोदश अध्याय नीति : 16 सेवा भाव चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के सोलहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भूमि से पानी निकालने के लिए जमीन को खोदा जाता है। इसमें व्यक्ति को… सेवा भाव

सुख—दुख

त्रयोदश अध्याय नीति : 13-15 सुख—दुख चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के तेरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुनिया में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा, जिसकी सारी ईच्छाएं पूरी होगी। जिसे मनचाहे… सुख—दुख

मोक्ष मार्ग

त्रयोदश अध्याय नीति : 11-12 मोक्ष मार्ग चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के ग्यारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुराइयों में, गलत विचारों में मन को लगाना ही बंधन है और इससे मन… मोक्ष मार्ग

धर्महीन मृत समान

त्रयोदश अध्याय नीति : 8-10 धर्महीन मृत समान चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य दो प्रकार के होते हैं— पहला जीते जी भी मरा हुआ मनुष्य।… धर्महीन मृत समान

यथा राजा तथा प्रजा

त्रयोदश अध्याय नीति: 7 यथा राजा तथा प्रजा चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के सातवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जैसा राजा होता है, वैसी प्रजा भी बन जाती है। राजा धार्मिक हो… यथा राजा तथा प्रजा

भविष्य के प्रति जागरूक रहना चाहिए

त्रयोदश अध्याय नीति : 6 भविष्य के प्रति जागरूक रहना चाहिए चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति भविष्य में आनेवाली विपत्ति के प्रति जागरूक रहता… भविष्य के प्रति जागरूक रहना चाहिए

स्नेह दुख का जड़ होता है

त्रयोदश अध्याय नीति : 5 स्नेह दुख का जड़ होता है चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिसे किसी से प्रेम होता है उसे उसी से भय… स्नेह दुख का जड़ होता है

मीठे बोल

त्रयोदश अध्याय नीति : 3— 4 मीठे बोल चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि देवता, सज्जन और पिता स्वभाव से प्रसन्न होते हैं। विद्वान व्यक्ति मी​ठी बोली… मीठे बोल

बीती बातों को भूला देना चाहिए

त्रयोदश अध्याय नीति : 2 बीती बातों को भूला देना चाहिए चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बीती बातों पर दुख करने से कोई लाभ नहीं होता… बीती बातों को भूला देना चाहिए

कर्म की प्रधानता

त्रयोदश अध्याय नीति : 1 कर्म की प्रधानता चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के प्रथम नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अच्छा कार्य करनेवाला मनुष्य क्षण भर जिए तो भी अच्छा है। वह अपने… कर्म की प्रधानता

सोचकर काम करना चाहिए

द्वादश अध्याय नीति : 18-19 सोचकर काम करना चाहिए चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के अठारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धन की अनाप—शनाप खर्च करनेवाला जिसका कोई भी अपना न हो, जो… सोचकर काम करना चाहिए

सीख कहीं से भी ले लें

द्वादश अध्याय नीति :17 सीख कहीं से भी ले लें चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति सभी से कुछ न कुछ सीख सकता है। उसे राजपुत्रों… सीख कहीं से भी ले लें

राम की महिमा

द्वादश अध्याय नीति : 15-16 राम की महिमा चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के पंद्रहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धर्म में तत्परता, मुख में मधुरता, दान में उत्साह मित्रों के साथ निष्कपटता,… राम की महिमा

सच्चा पंडित

द्वादश अध्याय नीति : 14 सच्चा पंडित चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के चौदहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को चाहिए कि अन्य व्यक्तियों की स्त्रियों को माता के समान समझे, दूसरों… सच्चा पंडित