हम भारतवासी विश्वगुरू थे। अभी भी अपने आपको विश्वगुरू मानते हैं और ऐसा हमारा मानना भी है कि भविष्य में भी हम ही विश्वगुरू रहेंगे। सच तो यह है कि विश्वगुरू बनने की जो योग्यता हमने निर्धारित की थी, उस पर आज भी हमारे सिवा कोई और खरा नहीं उतरता है। विश्वगुरू की उपाधि पर हमारा एकाधिकार था, आज भी है और आगे भी रहेगा। यहाँ तक विश्वगुरू बनने के मानक भी हम ही तय करते रहेंगे, कोई अन्य नहीं। दरअसल कई ऐसी शक्तियाँ जो हम भारतवासी में है वह अन्य किसी में नहीं है। जहाँ संपूर्ण विश्व भविष्य यानि आगे की कल्पना करता है या सोचता है। हम भूत यानि जो समय बीत चुका है उसके बारे में सटीक एवं स्पष्ट कल्पना कर सकते हैं, करते रहे हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे। यही एक योग्यता हमारे लिए काफी है। इसी के सहारे तो हम पूरी जिंदगी खुशी—खुशी जी लेते हैं। हमारी खुशियाँ इसी से तो है।
जब कोई अन्य देश के नागरिक वर्तमान एवं भविष्य में जीवनस्तर में सुधार लाने के लिए कोई अंवेषण कर कोई उपकरण बनाता है तो हमारे देश के प्रबुद्ध नागरिक तुरंत भूतकाल में कल्पना कर उस नये उपकरण के टक्कर के या उससे बढ़िया उपकरण ढूँढ़ लाता है। और हम आसानी से कह सकते हैं कि उस नये उपकरण बेशक जिसका उपयोग हम भी कर रहे हों, की तुलना में हमारा वह भूतकाल वाला यंत्र काफी अच्छा था।
दुनिया आज भले टेस्ट— ट्युब बेबी एवं IVF की सुविधा से नि:संतानों को संतान सुख देने में कामयाब हो रहे हों पर जननांगों के अलावा मुख, धड़, उदर और पैर से संतान प्राप्ति की कला एवं योग्यता तो प्राचीनकाल में हम भारतवासी के पास ही था। मजे की बात तो यह है कि हम इसका पेटेंट भी नहीं कराये हैं फिर भी इसका नकल करना किसी के बस की नहीं हैं।
सबसे बड़ी बात गुरू बनने के लिए शिक्षित होना जरूरी है। बेशक अभी हम शत—प्रतिशत इंसानों को शिक्षित नहीं कर पायें हों पर भूतकाल पर जरा निगाह दौड़ायें। उस समय बेशक शिक्षा महज कुछ घरानों तक सीमित था पर जानवर सारे शिक्षित थे। आज भले जलवाहक पोतों का हम या तो आयात करते हों या विदेशी उत्पादों पर निर्भर हों पर उस समय तो हमारे ये शिक्षित जानवर शिलाओं पर ईशनाम लिखकर समुद्र पर जबरदस्त पुल बना दिये थे। गल्प रचने की यही कल्पना शक्ति तो हमें विश्वगुरू बनाता है।
प्राचीन ग्रंथों में हमने ऐसी—ऐसी गल्पों की रचना की जिसके टक्कर के आधुनिक विश्व वैज्ञानिकों को कई सदी में भी यंत्रों के आविष्कार करना संभव नहीं होगा। हमने आज के इस दौर में भी इतने सस्ते आविष्कार से विश्व जगत को अवगत कराया है। जिसके बारे में शायद ही कोई सोच सकता है। मसलन हमने नालियों से सीधे पाईप द्वारा गैस लेकर इंधन के रूप में इस्तेमाल करने की कला संपूर्ण विश्व को दिया। और सारा विश्व इससे आज लाभांवित हो रहा है। हम इतने संतोषी हैं कि कच्चा तेल खाड़ी देशों से आयात कर अपने यहाँ उँचे दामें पर बेच रहें हैं ताकि उनका और हमारा अर्थव्यवस्था सुचारूरूप से कार्य कर सके।
इतना ही नहीं थाली बजाकर वायरस भगाने की खोज कर हमने विश्वजगत को अमूल्य उपहार दिया। आज सारा विश्व हमारा कृतज्ञ है। इससे यह बात तो एकदाम साफ है न केवल हम प्राचीन काल में मनुष्यों के शरीर में जानवरों के शरीर के अंग फिट कर सकते थे बल्कि आज भी हम चिकित्सा शास्त्र में अग्रणी हैं। हम चाहें तो गोबर स्नान से कोरोना जैसे वायरस को मार सकते हैं। और हम विश्वगुरू हों क्यों नहीं? हमारे यहाँ वह इंसान भी शिक्षा मंत्री के काबिल होता है जिसने कभी कॉलेजों का द्वार तक नहीं देखा हो। और तो और ऐसे व्यक्ति भी परीक्षा के प्रेशर को कम करने की सलाह बड़ी आसानी से देते हैं जो जीवन में हमेशा परीक्षा से भागता रहा हो। आप अगर बीमार हो तो मिलने आने वाले यार—दोस्त सगे—संबंधी सभी कोई न कोई नुस्खा बताकर ही जायेंगे। जैसे वे सभी इसी विषय पर डॉक्टरेट किये हों पर डॉक्टर बिना फीस लिये नब्ज नहीं छूयेगा।
दुख हमसे इसीलिए कोसो दूर है। हमें कभी गरीबी का एकसास नहीं हुआ क्योंकि हमें पता है कि हम कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश में रहते हैं। हमें कभी निरक्षरता का एहसास नहीं हुआ क्योंकि हमें पता है कि विश्व में हमारे जैसा ज्ञानी कोई भूतकाल में था ही नहीं और तो और शिक्षा की देवी भी तो हमारे पास ही है। प्राकृतिक और मानव निर्मित जितनी विविधाएँ हमारे देश में हैं उतनी तो पूरे सौ अन्य देशों को मिलाकर भी नहीं है। लोगों ने भाषा का आविष्कार किया हमने तो देवताओं से ही भाषा सीखीं। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि हमें कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, हम बिना कुछ किये ही विश्वगुरू हैं।