प्रथम अध्याय नीति:1.11-12
समय आने पर परख होती है।
चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के ग्यारहवें एवं बारहवें नीतियों में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अत: उसे अपने हर कार्य करने में दूसरों की सहायता की आवश्यकता होती है। ये सहायक नौकर, मित्र, रिश्तेदार या पत्नी हो सकती हैं। इन सबकी परीक्षा तो समय आने पर ही हो सकती है।
किसी विशेष अवसर पर नौकर को महत्वपूर्ण काये करने हेतु भेजा जाए तभी उनकी कार्यकुशलता एवं ईमानदारी की परीक्षा हो सकती है। विपत्ति या रोग के समय मित्र एवं नाते—रिश्तेदारों की परीक्षा होती है। धनाभाव यानि गरीबी के समय पत्नी की परीक्षा होती है यानि उसका प्रेम वास्तविक था या सिर्फ वह धन के कारण प्रेम करती थी।
आचार्य चाणक्य बताते हैं कि परिवार—रिश्तेदार और मित्रों की पहचान बीमार अवस्था में, असमय शत्रु से घिर जाने पर,राजकीय अभियोग यानि राजा या सरकार की ओर से व्यक्ति पर न्यायिक मामले में अभियोग लगाने की स्थिति में या मृत्यु हो जाने पर श्मशान भूमि में ले जानेवाला व्यक्ति ही सच्चा मित्र या रिश्तेदार होते हैं। वैसे तो स्वार्थ सिद्धि हेतु यानि अपना लाभ के लिए लोगों द्वारा मित्रभाव अथवा रिश्तेदारी प्रदर्शित करना आम बात है।