त्रयोदश अध्याय नीति : 18-19
गुरू महिमा
चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के अठारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि परमात्मा का नाम उँ है जिसे एकाक्षर ब्रह्म कहा जाता है— वो परमात्मा का दर्शन करानेवाले गुरू का आदर नहीं करता उस शिष्य को सौ बार जन्म लेकर कुत्ता बनना पड़ता है और फिर उसे चांडाल के घर जन्म लेना पड़ता है।
वहीं उन्नीसवी नीति में आचार्य कहते हैं कि युग का अंत होने पर भले ही सुमेरू पर्वत अपने स्थान से हट जाए और कल्प का अंत होने पर भले ही समुद्र विचलित हो जाएं। सज्जन अपने मार्ग से विचलित नहीं होते।